Rajya Sabha

December 17, 2024

Md Nadimul Haque’s speech on ‘Secularism’, as mentioned in the Preamble, during the Special Discussion on the 75th anniversary of adoption of the Constitution of India

Md Nadimul Haque’s speech on ‘Secularism’, as mentioned in the Preamble, during the Special Discussion on the 75th anniversary of adoption of the Constitution of India

उपसभापति महोदय, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि मुझे इस… सर, मुझे इस विषय पर बोलने के लिए अलग करने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया सर,

यह वहीं ख़्वाब है, कोई और ही लाएगा,
जो हम को कहे, किसी ने कहा जाएगा।

सर, ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के 13 सदस्य राज्य सभा में मौजूद हैं। हममें से नौ सदस्य ऐ रिप्रेट थे और एक सदस्य मुसलमान वर्ग से हैं। हम मुसलमान परसन्स, मुसलिम कम्युनिटी, मुसलिम मंचबद, मुसलिमों अवगाह से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन हम सब पहले हिंदुस्तानी हैं, इंडियन हैं। मेरे साथियों ने sovereignty, socialism, democracy, justice, liberty, equality and fraternity के मीनारों पर इज़हार-ए-ख़याल किया है। आज मैं secularism पर बात करूंगा और जोरिस तौर पे अभी ज़िक्र किया working secularism की शानदार मिसाल ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की टीम ने सबको दी। आज की इस कांस्टिट्यूएंट डे के 75 साल मुकम्मल होने पर और आज इस मौके पर मैं कांस्टिट्यूएंट डे पर इतना ज़रूर कहना चाहता हूं कि कांस्टिट्यूएंट के लिए उन लोगों का बहुत बड़ा योगदान रहा है,वे, वहक़ुबूर लोग थे, अब और लोग कांस्टिट्यूशन में मर्म को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं।सर, आज अगर हम किसी को शक की निगाह से देखेंगे, किसी के ऊपर शक की बुनियाद पर किसी को टारगेट करेंगे, किसी के निवास को डाउटफुल बना देंगे, तो उसका सबसे पहला असर नागरिकों की शारीरिक छवि के ऊपर पड़ता है, मन के ऊपर पड़ता है।और यही शख़्स अगर अपने बच्चों को यह बताएगा कि मेरे मां-बाप को इस तरह से आज़ाद मुल्क में शक की निगाह से देखा गया, तो वो बच्चा आज़ाद सोच और लोकतांत्रिक हो सकेगा क्या?मैंna सांसदों से सवाल है कि यह secularism किस दिशा में जा रहा है?आज एक कश्मीरी महबूब नहीं, एक कश्मीरी पंडित अगर अपने बुनियादी हक़, अपने कंस्टिट्यूशनल हक़, अपनी पहचान की बात करे, तो फॉरनर के शक़ में रखा जाता है, तो क्या अंदाज़ा लगाए कि हम एक मुल्क के अंदर और देशवासी में फर्क बता रहे हैं? इस साल हिंदुस्तान में नफरत के वाक़यातों में 60 प्रतिशत इज़ाफा हुआ है और 75 फ़ीसदी ऐसे वाक़यात, बीजेपी के ज़ेर-ए-इख़्तियार रियासतों, जैसे असम, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से, हुए हुए हैं।
(व्यवधान)
सर, मैं यही सवालात सिर्फ हमारी कॉन्स्टिट्यूएंट वैल्यूज की तहफ्फुज़ के लिए नहीं, बल्कि हिंदुस्तान के सेक्युलर किरदार को बचाने के लिए भी उठाना चाहता हूँ।

جناب نذیر احمد لای (مغربی بنگال):
جناب، میں اِس موضوع پر بولنے کے لئے آپ کا شکر گزار ہوں۔

“سرور ہر دل خرامی نہ کرے گا قیام،
جو فِراق میں بھی خوش ہو، وہی عشق کا مقام ہے”

سر، آل انڈیا ترنمول کانگریس کے 13 معزز ممبرانِ راجیہ سبھا اس ایوان میں ہیں۔ ہم میں سے زیادہ تر پچھڑے ہوئے اور اقلیتی طبقات سے ہیں۔
ہم مسلمانوں کی نمائندگی کرتے ہیں۔
میرے رفقاء نے آج بہت سی باتوں کا ذکر کیا، خاص طور پر sovereignty, socialism, democracy, justice, liberty, equality and fraternity جیسے الفاظ کا۔

سیکولر ہے۔ MSME کی بات کرتے ہیں۔ مرکزی حکومت کی MSME کے متعلق کرنا ایک واضح مثال ہے کہ کن طرح اقلیتوں کو کچلا گیا ہے۔
MSME کا کہنا ہے کہ اگر کسی علاقے میں اقلیتی، خاص طور سے مسلمان اکثریت میں ہوں، تو انہیں نئے کاروبار کی تربیت دیجئے، انڈسٹریز میں قابل بنایئے، تاکہ وہاں سے غربت، بے روزگاری، کم تعلیمی نظام کو دور کیا جائے۔
لیکن، افسوس اس بات کا ہے کہ جس علاقے میں زیادہ تر مسلمان MSME سیکٹر میں کاروبار کرتے ہیں، وہاں پر سب سے زیادہ نقصان ہوا ہے۔
میں یہ کہنے میں بھی عار محسوس نہیں کرتا کہ MSME کے سہارے اقلیتوں کو کاروبار کے کسی میدان میں گھسنے نہیں دیا گیا، بلکہ ہراساں کیا گیا۔
دہلی کی دکانوں کو بند کروا کر، کچھ خاص طبقے کے لوگوں کی دکانوں کو بند کروا کر، لوگوں کو سڑکوں پر لاکر کھڑا کر دینا— یہ MSME نہیں ہے۔
یہ صرف کاروبار کے خلاف نہیں، بلکہ ایک خاص کمیونٹی کو ختم کرنے کی سوچ ہے۔

اسی سال ہندوستان میں 60 فیصد نفرت سے متعلقہ واقعات پیش آئے ہیں۔
اور 75 فیصد ایسے واقعات پیش آئے ہیں، جو ان ریاستوں میں ہوئے ہیں، جہاں بھارتیہ جنتا پارٹی کی حکومت ہے، جیسے کہ آسام، گجرات، مدھیہ پردیش اور اتر پردیش۔
میں یہ سوال صرف آئینی قدروں کے تحفظ کے لیے نہیں بلکہ ہندوستان کے سیکولر کردار کو بچانے کے لیے بھی اٹھا رہا ہوں۔۔۔